पात्रता को कोई ना यहाॅं पूछता


# दैनिक प्रतियोगिता हेतु 

पात्रता को न कोई यहाँ पूछता 

गीत-उपमेंद्र सक्सेना एडवोकेट

माल भेजा गया था किसी के लिए, हाय कुछ लोग मिल बाँट कर खा गए
पात्रता को न कोई यहाँ पूछता, तिकड़मों से वही आज फिर छा गए।

योजनाएँ बहुत भ्रष्ट होती रहीं, और जल की तरह खूब पैसा बहा
निर्बलों का न इससे भला कुछ हुआ, जानकर भी किसी ने नहीं कुछ कहा
दिख रहीं खूब जच्चा कुपोषित यहाँ, और बच्चा अछूता न इससे रहा
लाभ सक्षम उठाते रहे हैं सदा, किंतु उपहास को निर्धनों ने सहा

कागजों का यहाँ पेट भरता रहा, मतलबी लोग फिर सामने आ गए
पात्रता को न कोई यहाँ पूछता,  तिकड़मों से वही आज फिर छा गए।

चरमराई व्यवस्था यहाँ इस कदर, लाभ के नाम पर खेल जमकर हुआ
भूख से लोग जो भी तड़पते मिले, दे रहे हैं बहुत आज वे बददुआ
बन न पाया कभी काम लाचार का, वेदना ने बहुत हाय दिल को छुआ
छिन गए आज फुटपाथ उनसे यहाँ, हाय आवास की योजना थी जुआ

जो बने थे भवन निर्धनों के लिए, वे धनी वर्ग को भी बहुत भा गए
पात्रता को न कोई यहाँ पूछता, तिकड़मों से वही आज फिर छा गए।

अब चिकित्सा व्यवस्था करे आज क्या, कार्ड आयुष न जब निर्बलों के बने
पास पैसा नहीं तो चिकित्सा नहीं, आज शिशु को प्रसूता सड़क पर जने
देख लो मर गई आज संवेदना, इसलिए लोग हैं ऐंठ में अब तने
और लज्जा न जाने कहाँ छिप गयी, आस्था जब यहाँ बेबसी में छने

उल्लुओं से जुड़े हैं यहाँ लोग जो, आज वे योग्यता के किले ढा गए
पात्रता को न कोई यहाँ पूछता, तिकड़मों से वही आज फिर छा गए।

 रचनाकार- उपमेंद्र सक्सेना एड०
                    'कुमुद- निवास'
           बरेली (उ० प्र०)
 मोबा नं०- 98379 44187

 (लोकप्रिय समाचार पत्र दैनिक 'आज' में प्रकाशित रचना )

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4 Comments

Suryansh

12-Oct-2022 05:03 PM

लाजवाब लाजवाब

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Wahhh बहुत ही जीवंत चित्रण आज के परिवेश का

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Raziya bano

10-Oct-2022 09:27 PM

Behtareen

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